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दीक्षान्त समारोह फोटो

 
पीपल का पूजन क्यों?
      गीता में भगवान् श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं- ‘अशवत्थः सर्ववृक्षाणाम्’ अर्थात् ‘मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूं।’ इस कथन में उन्होने अपने आपको पीपल के वृक्ष के समान ही घोषित किया है।
      पदमपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान् विष्णु का रुप है। इसीलिए इसे धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठ देव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधिवत् पूजन आरंभ हुआ। अनेक अवसरों पर पीपल की पूजा का विधान है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में साक्षात् भगवान् विष्णु एवं लक्ष्मी का वास होता है। पुराणों में पीपल के वृक्ष में साक्षात् भगवान् विष्णु एवं लक्ष्मी का वास होता है एवं बड़ा महत्व भी बताया गया है-
      मूल विष्णुः स्थितो नित्यं स्कन्धे केशव एवं च। नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान् हरिः।।
      फलेऽच्युतो न सन्देहः सर्वदेवै: समन्वितः।।
      स एव विष्णुद्र्रुम एवं मूर्तो महात्मभिः सेवतिपुण्यमूलः। यस्याश्रयः पापसहस्त्रहन्ता भवेन्नृणां कामदुघो गुणाढ्यः।।
      अर्थात पीपल की जड में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तो में भगवान् हरि और फल में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं। यह वृक्ष मूर्तिमा श्रीविष्णुस्वरुप है। महात्मा पुरुष इस वृक्ष के पुण्यमय मूल की सेवा करते है। इसका गुणों से युक्त और कामनादायक आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों का नाश करने वाला है।’
      पदमपुराण के मतानुसार पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयुलंबी होती है। जो व्यक्ति इस वृक्ष को पानी देता है, वह सभी पापों से छुटकारा पाकर स्वर्ग को जाता है। पीपल में पितरों का वास माना गया हैं इसमें सब तीर्थो का निवास भी होता है। इसीलिए मुंडन आदि संस्कार पीपल के नीचे करवाने का प्रचलन है।
      महिलाओं में यह विश्वास है कि पीपल की निरंतर पूजा अर्चना व परिक्रमा करके जल चढाने से संतान की प्राप्ति होती है, पुत्र उत्पन्न होता है, पुण्य मिलता है, अदृश्य आत्माएं तृत्प होकर सहायक बन जाती हैं। कामनापूर्ति के लिए पीपल के तने पर सूत लपेटने की भी परंपरा हैं पीपल की जड़ में शनिवार को जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है। शनि की जब साढेसाती दशा होती है, तो लोग पीपल के वृक्ष का पूजन और परिक्रमा करते है, क्योंकि भगवान कृष्ण के अनुसार शनि की छाया इस पर रहती है। इसकी छाया यज्ञ, हवन, पूजापाठ, पुराणकथा आदि के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। पीपल के पत्तों से शुभकाम में वंदनवार भी बनाए जाते हैं। धार्मिक श्रद्धालु लोग इसे मंदिर परिसर में अवश्य लगाते हैं। सूर्योदय से पूर्व पीपल पर दरिद्रता का अधिकार होता है और सूर्योदय के बाद लक्ष्मी का अधिकार होता है। इसीलिए सूर्योदय से पहले इसकी पूजा करना निषेध कहा गया है। इसके वृक्ष को काटना या नष्ट करना ब्रह्महत्या के तुल्य पाप माना गया है। रात में इस वृक्ष के नीचे सोना अशुभ माना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल रात दिन निरंतर 24 घंटे आक्सीजन देने वाला एकमात्र अदभुत वृक्ष है। इसके निकट रहने से प्राणशक्ति बढ़ती है। इसकी छाया गर्मियों में ठंडी और सर्दियों में गर्म रहती है। इसके अलावा पीपल के पत्ते, फल आदि में औषधीय गुण रहने के कारण यह रोगनाशक भी होता है।
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