Bhavishy Darshan
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Tantrik Pendant/ तांत्रिक लाकेट

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दीक्षान्त समारोह फोटो

 
क्यों पलोटती है लक्ष्मी भगवान के चरण
      लक्ष्मी को जब देखो तभी वह विचारी भगवान् के चरण चापती दीख पड़ेगी। जब हिन्दुओं के इष्टदेव के घर में ही अर्धागिनी कही जाने वाली लक्ष्मी देवो को नौकरानी सी समझा जा रहा हो तब उसके अनुयायीगण यदि अपनी स्त्रियों को पाँव की जूती बताएं तो कौन नई बात?
      मौलाना के घर में स्त्रियों को जिन समझा जाता है तभी बुर्कों और टाट पटोरों में लपेट कर स्त्रियों के पुलिन्दे-से बान्ध कर बण्डल बना दिये जाते हैं। ईश्वर की अनुपम देन वायु से भी उन्हें वंचित रखा जाता है फिर न जाने किस मुंह से वे मौलाना हिन्दुओं की आलोचना करते नहीं लजाते? ईसाई जगत प्रकट में बड़ा ही स्त्री जाति का हितैषी होने का दम भरता है, परन्तु सभी पाश्चात्य देशों में विवाह से पूर्व ही वहां का पुरुष-समाज रस-लम्पट भ्रमर की भाँति आधी से अधिक कुमारियों का सतीत्व भंग करके उन्हें ‘श्मशान घटिका’ की भाँति जीवन भर के लिए छूछी बना छोड़ता है। सोलजर कहे जाने वाले ये विदेशों सैनिक प्रायः ऐसे ही व्यभिचार-जात, अज्ञात माता पिता      समाजी अपने व्याख्यानों में स्त्रियों के आनरेरी वकील बन कर बड़ी वकालत करते हैं परन्तु दिल्ली मथुरा आगरा पटना आदि नगरों के न्यायालयों के उन निर्णयों की अभी रोशनाई भी नहीं सूख पाई है, जिनमें कि वनिता विश्राम आश्रमों और विधवाश्रमों द्वारा कई-कई बार बेची गई विधवानों और कन्याओं की करूणापूर्ण कहानी भरी पड़ी है और इन संस्थाओं को खुले बन्दों स्त्री-विक्रयकारिणी एजेन्सियें घोषित किया गया है। अब भी पश्चिमी पंजाब से आने वाली अनाथ स्त्रियां समाचार पत्रों में विज्ञापन छपाकर इन्हीं महाशयें द्वारा बेची जा रही हैं। यदि इन जघन्य काण्डों का पूरा विवरण जानना चाहे तो पं॰ राजनारायन अर्मान का ‘खुलाचेलेंज’ पढ़ें।
      परन्तु सनातन धर्म स्त्रियों को पांव की जूती नहीं समझता अपितु साक्षात् ‘देवी’ समझता है। तभी तो प्रत्येक कन्या के नाम के पीछे ‘देवी’ शब्द का प्रयोग करता है। नवरात्रों में कन्याओं का भगवत् प्रतिमा की भाँति षोड़शोपचार से पूजन करता है। भगवत्राम का संर्कीतन करते हुए प्रत्येक ध्वनि में भगवान् के नाम से पहिले पाणिनी के ‘अभ्यर्हितं पूर्वम्’ इस नियम के अनुसार अनिवार्य रूप से मातृ-शक्ति के नामों को सम्मिलित करता है। यथा- लक्ष्मीनारायण, गौरीशंकर, सीताराम और राधेश्याम आदि-2। सो सनातनधर्म तो स्त्री को बाल्यावस्था में गौरी, युवती होने पर लक्ष्मी और वृद्धा हो जाने पर साक्षात् सावित्री का रूप मानता है। इसलिए जो मूर्ख स्त्री को जूती कहेगा उसे स्वयं फुलबूट या चप्पल बनने क लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि जूती के जातीय भाई बन्धु तो बूट चप्पल ही हो सकते हैं?
      लक्ष्मी भगवान् के सदैव चरणों को पलोटती है?- इसका तात्पर्य यह है कि लक्ष्मी की इच्छा करने वाले सांसारिक पुरुषों को यह अटल सिद्धान्त खूब समझ लेना चाहिए, कि यदि वे लक्ष्मी चाहते हैं तो उन्हें श्रीमत्रारायण के चरणविंद का आश्रय लेना चाहिए, क्यों कि लक्ष्मी का निवास एकमात्र भगवान् के चरण कमलों में ही है जो रावण की भांति उक्त तत्व को न समझकर राम भगवान् से तो वैर बांधते हैं और सीता=लक्ष्मी को बलात् अपने वर में रखना चाहते हैं उनको समझ लेना चाहिए कि-ऐसी अशास्त्रीय विचारधारा जिन मस्तकों में भरी है वे मस्तक भी रावण के मस्तकों की भान्ति शिव शिव तानि लठुन्ति गृध्रपादैः’के अनुसार एक दिन दुर्गति के भाजन बनेंगे।
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