Bhavishy Darshan
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Favourable Gems/राशि रत्न


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Tantrik Pendant/ तांत्रिक लाकेट

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Rashiphal / राशिफल

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दीक्षान्त समारोह फोटो

 
अंतश्चेतन को जाग्रत करने के लिये
      स्थानः- आज के शहरी जीवन में जहां एक छोटा सा कमरा, रसोई से लेकर प्रजनन गृह तक बना रहा हैं। वहां एंकात स्थान की कल्पना करना भी दुष्कर है। परन्तु उठने से पहले ब्रह्म मुहूर्त में जप करना या रात को सब के सोने के बाद जप करना ठीक रह सकता है। क्योंकि मूलमंत्र है। एकाग्रहता। अन्यथा पुण्य क्षेत्र, तीर्थस्थल, सिद्ध पीठ, मंदिर, आदि उत्तम स्थान है।
      आसान-स्थान चयन व समय चयन के बाद आसन आता है। आसन धरती, पत्थर, लकड़ी, बांस वस्त्र, कम्बल व चर्म के हो सकते है। परन्तु वस्त्र के आसन-ऊन, रेशम व कपास के आसन उत्तम रहते है। परन्तु वस्त्र में पुराना कपड़ा छेद, गदंा, तेल, घी आदि नहीं लगा होना चाहिये। जप हमेशा आसन पर बैठकर करना चाहिये।
      रंग- आसन के विभिन्न रंग हो सकते है। शान्ति व पौष्टिक कर्म के लिये सफेद रंग का आसन काम में लाया जाता है। अन्यथा देवताओं के रुप व वर्ण के अनुसार भी आसन का प्रयोग होता है जैसे हनुमान, गणेश जी के लिय लाल रंग, काली के लिये काला व बगलामुखी के लिये पीला आसन उत्तम है।
      दिशा- स्नान आदि से निवृत होकर साधक को पूर्वाभिमुख होकर आसन पर बैठना चाहिये। प्रातः कालीन उपासना पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिये।
      मासः- साधन किस मास में आरम्भ की जाये?
आश्विन, कार्तिक, मार्गर्शीष माघ, फाल्गुन, वैसाख और श्रावण मास शुभ हैं अर्थात् अगस्त सितम्बर अक्टूबर, नवंबर, दिसम्बर, फरवरी, मार्च, अप्रैल। आश्विन (22 सितंबर से 21 अक्टूबर तक) देव शयन हुआ करता है। इसलिये यह मास मध्यम रहता है। साथ में यह भी देख लेना चाहिये कि बृहस्पति या शत्रु अस्त तो नहीं या मल मास तो नहीं।
      तिथि एवं वार-तिथियों में द्वितीय, पंचमी, सप्तमी, दशमी, त्रियोदशी पूर्णमा श्रेयस्कर है। देवता के अनुसार भी तिथितय की जाती है जैसे गणेश की चतुर्थी, शक्ति की अष्टमी चतुर्थदशी, नरसिंह की चतुर्दशी, विष्णु की एकादशी वार में सोमवार मध्यम बुध, गुरु व शुक्र उत्तम है। रवि व मंगल सात्विक मंत्रों में वर्जित है। किन्तु सूर्य मंत्रों में रविवार, हनुमान के मंत्रों मंे मंगलवार व शनिवार ग्राह्य है।
      नक्षत्र- पुनर्वसु, पुष्प, हस्त, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती उत्तम है।
      तिलक-सिर, ललाट, कंठ, हृदय, दोनों बाहु, दोनों हाथ, नाभी, पीठ और दोनों बगल इस प्रकार बारह स्थानों पर तिलक करने का विधान है कामना पूर्ति के लिये चंदन का तिलक लगाते है।
      संध्या या जपः- किसी भी वर्ण या किसी भी साधक को अपने गुरु की आज्ञा से जप आरम्भ करना चाहिये संध्या का अर्थ है तन, मन एवं वाणी से ईश्वर, देवता का ध्यान करना।

      1. मन्त्र क्या है? वह कैसे प्रभावित करता है? अनिष्ट फल को कैसे दूर करता है?
      2. मंत्र कार्य कैसे करता है?
      3. मंत्र व स्तोत
      4. मन्त्र - सामर्थ
      5. अंतश्चेतन को जाग्रत करने के लिये
      6. साधन किस मास में आरम्भ की जाये?
      7. जप का विशेष महत्व है। जप की कुछ सावधानियाँ
      8. जप तीन प्रकार का होता है
      9. माला संस्कार
      10. माला फेरते हुए कुछ सावधनियाँ
      11. पुष्प- शास्त्रों में पूजन के लिये पुष्प का विशेष महत्व
      12. पुरश्चरण
      13. यज्ञ/हवन

Pooja/Tantra           पूजा / तंत्र

    आपकी वर्तमान एंव भविष्य की परेशानियों एंव कष्टों को दूर करने हेतु मंत्र तंत्र, अनुष्ठान एंव यज्ञ का प्रावधान है जिससे शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एंव शिक्षा आदि परेशानियों को दूर किया जा सकता है।

विवाह तंत्र घट विवाह अनुष्ठान अनुकूल रत्न
 
Our Products           हमारे उत्पाद

    सिद्ध यंत्र, सिद्ध लाकेट, सिद्ध रुद्राक्ष एंव सिद्ध मालायें धारण करने एंव मंत्रों के जाप से पति-पत्नि बशीकरण, मुकदद्मा जीतने, शिक्षा एंव नौकरी की रूकावटों, शारीरिक, मानसिक परेशानी दूर की जा सकती है।

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