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पिरामिड और वास्तु
    भारतीय वास्तु के अनेक महत्वपूर्ण सिद्धांत पिरामिड से मेल खाते हैं। भारतीय वास्तुशास्त्र में ब्रह्मस्थान को खुला छोड़ने अर्थात् दबाव रहित रखने का सिद्धांत पिरामिडों में भी लागू होता है। पिरामिड वास्तु में ब्रह्मस्थान के ठीक ऊपर त्रिकोणीय छत होती जो अत्यधिक ऊंची होने के कारण ब्रह्मस्थान के ऊपर आकाश तत्व को प्रचुरता से उपलब्ध कराती है। साथ ही अपने विशेष आकार के कारण पिरामिड के ब्रह्मस्थान को दबाव रहित रखती है।
     à¤­à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वास्तुशास्त्र में पंचतत्वों के संतुलन पर विशेष ध्यान रखा जाता है, जो कि पिरामिड वास्तु में भी मिलता है। यह बात अलग है, कि मिस्रवासियों ने जिस उद्देश्यों से पिरामिडों का निर्माण किया था, उसमें उन्हें जलतत्व तथा वायुतत्व की अधिकता की आवश्यकता नहीं थी, अतः उन्होंने पिरामिड में उनका प्रावधान न्यून ही रखा था, किंतु अन्य उद्देश्यों से बनाये जाने वाले पिरामिडों में इनका उचित प्रावधान रखा जाना चाहिए।
     à¤ªà¤¿à¤°à¤¾à¤®à¤¿à¤¡ और वास्तु में घनिष्ट संबंध है। इसकी विशिष्ट आकृति हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। जब भवन वास्तुशास्त्र के अनुसार  à¤¬à¤¨à¤¤à¤¾ है तो उसमें उचित स्थान पर पिरामिड रखने से भवन की भीतरी ऊर्जा सकारत्मक रूप से क्रियाशील रहती है। इस कारण विपरीर्त ऊर्जाओं में संतुलन निर्मित होता है, जिससे उस भवन में रहने वाले लोग प्रभावित होते हैं।
     à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥ विद्या, भारतीय प्राचीन भवन निर्माण की कलाओं में से एक है। उसकी अभिकल्पना मूल रूप से भवन निर्माण, कार्य स्थल, मंदिर  à¤”र अन्य भवनों के लिए मार्गदर्शिका है। वास्तु में निर्माण से जुड़े सभी पहलुओं जैसे- भूमि चयन, भवन, निर्माण साम्रगी, कक्ष, द्वार, खिड़की आदि की स्थिति सहित अनेक बातों की विस्तृत जानकारी होती है। 

     à¤®à¤¤à¥à¤¸à¥à¤¯ पुराण के अनुसार वास्तु पुरूष की उत्पत्ति भगवान शिव के  à¤¶à¥à¤µà¥‡à¤¦ कण से हुई है। वास्तु पुरूष स्वभावतः क्रूर, भयानक व अपने मार्ग में आने वालों को नष्ट करने वाला था। भगवान शिव के द्वारा उसे वरदान प्राप्त हुआ कि वह आकाश पाताल व पृथ्वी पर सभी चीजों का भक्षण कर सकता है। इस पर सभी देवता डर के मारे उस पर पैर रखकर खड़े हो गये। ब्रह्याजी ने इस असुर का नाम ‘वास्तुपुरूष’ रखा, उन्होंने घोषणा की कि पृथ्वी वासियों के लिए यह पूजनीय होगा। भवन निर्माण के समय वास्तु पुरूष का सम्मान करना अनिवार्य होगा। अन्यथा वह वहां रहने वालों के लिए समस्याएं उत्पन्न करेगा। वहां निवास करने वाले शांति पूर्वक नहीं रह पायेंगे और न ही उनके सभी  à¤•à¤¾à¤°à¥à¤¯ र्निविघ्न सम्पन्न  à¤¹à¥‹ पायेंगे। भूखंड में वास्तुपुरूष की कल्पना इस प्रकार की गई है- उसका सिर ईशान कोण में, दोनों कंधे क्रमशः उत्तर-पूर्व दिशा में, कोहनियां एवं आग्नेय कोण में और जुड़े हुए तलुए नैऋत्य कोण में हैं। वास्तु पुरूष का पेट भूखंड के मध्य में स्थित माना गया है, जिसे ब्रह्मस्थान कहते है।
     à¤¬à¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ किसी भी भूखंड या भवन का केंद्र होता है। ब्रह्मस्थान 81 खंड़ों में विभक्त वास्तु मंडल के बीच के नौ वर्गां में व्याप्त है  à¤¤à¤¥à¤¾ वास्तु पुरूष की नाभी स्थल पर स्थित है। ब्रह्मस्थान को खुला, साफ-सुथरा एवं स्वच्छ रखना आवश्यक है। वास्तु में मान्यता है कि खम्भा गाड़कर, कील ठोंककर, भारी चीजें रखकर ब्रह्मस्थान पर यदि चोट पहुंचाई जाये तो गृहस्वामी को कष्ट होता है। अतः इस भाग को सुरक्षित रखा जाना आवश्यक है। ब्रह्मस्थान से भवन को आध्यात्मिक ऊर्जा व आकाश तत्व की प्राप्ति होती है। यदि ब्रह्मस्थान को किसी कारणवश खुला नहीं रख सकते हैं तो हमें पिरामिड द्वारा उसका उपाय अवश्य करना चाहिए।
     à¤œà¤¿à¤¸ प्रकार भवन में ब्रह्मस्थान होता है, उसी प्रकार पिरामिड में भी ब्रह्मस्थान निश्चित होता है। इसे  à¤µà¤¿à¤¦à¥‡à¤¶à¥‹à¤‚ में  à¤ªà¤¾à¤µà¤° प्वाइंट कहते हैं । यह भाग पिरामिड की एक तिहाई ऊंचाई पर स्थित होता है। यहीं से पिरामिड सारी ऊर्जा ग्रहण करके अन्य भागों में विपरित करता है। पिरामिडों के पीछे महत्वपूर्ण रहस्य छिपा है। इसमें विश्व के शाश्वत ज्ञान की जीवंत संयोजन है। पिरामिड का प्रत्येक कोना बुद्धि, शांति, सच्चाई तथा गहनता का प्रतीक है। मिस्र के पिरामिडों में वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन प्रचुरता से किया गया है।

     à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥ एक ऐसा विज्ञान है जो पंचतत्वों के अनुपातों में संतुलन स्थापित करता है। ताकि उस संतुलनकारी घर की निवासी शांति, प्रसन्नता व सही निर्णय के लिए सरलता पूर्वक वातावरण प्राप्त कर सकें।
     à¤ªà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• भूखंड को 9x9 के 81 भागों में विभक्त किया जाता है। भूखंड के मुख्य नौ भाग (बराबर-बराबर) क्रमशः नवग्रह ऊर्ता के प्रतिरूप  à¤¹à¥ˆà¤‚। वास्तुशास्त्र में चार दिशाओं के अतिरिक्त चार उपदिशाएं भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। घर डिजाइन करने तथा रसोईघर, भोजनालय, शौचालय,  à¤…ध्ययनकक्ष, शयनकक्ष आदि की स्थिति निश्चित करने में हम इन आठों दिशाओं और उनसे संबंधित ग्रह व देवता आदि के ज्ञान की मदद लेते हैं क्योंकि वास्तुशास्त्र में हर दिशा का अपना अलग महत्व होता है। वास्तुपुरूष के अलावा वास्तु निर्माण में तकनीकी पक्ष का पोषण विश्वकर्मा ही करते हैं। गृह निर्माण का सर्वप्रथम निर्देश देने वाले विश्वकर्मा ही थे। वे देवताओं के शिल्पकार थे। भारतीय चिंतकों व मनीषियों के अनुसार निर्माण कार्यों में साधारण नियमों का पालन करना परम असवश्यक है ताकि उन्हें धार्मिक एवं आध्यात्मिक स्वरूप द्वारा अधिक महत्वपूर्ण बनाया जा सके। किसी भी भूखंड को शुभ परिणामदायक बनाने  à¤•à¥€ दृष्टि से ‘वास्तु पूजा’ अत्यंत अनिवार्य है।
   à¤œà¥‹ लोग ऐसे भावनों व मकानों में रहते हैं जहां  à¤•à¥‹à¤ˆ वास्तु-दोष है, तो पिरामिड वास्तु (पायरा वास्तु) के उपयोग  à¤¸à¥‡ घर के वास्तु दोष को दूर किया जा सकता है। पिरामिड में एक विशिष्ट प्रकार किरणें उत्पन्न होती हैं, जो चेतन अचेतन- सभी प्रकार वास्तुओं पर अपना जादुई प्रभाव डालती हैं। पिरामिड किसी पदार्थ या शरीर में अंतनिर्हित ऊर्जा को जाग्रत करता है। इसके चारों भाग आत्मिक शक्ति के द्योतक हैं। पिरामिड का पश्चिमी भाग अंधकार का, पूर्वी भाग प्रकाश का, उत्तरी भाग गरमी का तथा दक्षिणी भाग ठंडक को प्रतीक है।
पिरामिड का विशेष आकार अपने आस-पास के वातावरण पर अनुकूल प्रभाव डालता है। पिरामिड के मूल सिद्धांत वास्तुशास्त्र के अनुसार  à¤¹à¥€ हैं।

     à¤ªà¤¿à¤°à¤¾à¤®à¤¿à¤¡ द्वारा वास्तु दोष को दूर किया जा सकता है। पिरामिड को सही दिशा तथा सही क्रम में रखने से आदर्श वास्तु स्थिति उत्पन्न  à¤¹à¥‹à¤¤à¥€ है। घर के किसी भी क्षेत्र को ऊर्जावान बनाने में पिरामिड वास्तु सक्षम है। आज के आधुनिक युग में स्थान व धन के अभाव में संपूर्ण वास्तु के नियमों का पालन करना असंभव होता जा रहा है। इसी कारण अधिकतर घरों में वास्तु दोष रह जाते हैं उन्हें सुधारना व ठीक करना मंहगाई के कारण नामुमकिन होता है। ऐसे में वास्तु दोष दूर करने के लिए पिरामिड वास्तु अच्छा उपाय है। वास्तु दोष को दूर करने के लिए उस स्थान पर पिरामिड, वास्तु यंत्र का प्रयोग किया जाता है। जिससे नकारात्मक ऊर्जा को पिरामिड ग्रहण करके सकारत्मक ऊर्जा का निर्माण करता है।
     à¤ªà¤¿à¤°à¤¾à¤®à¤¿à¤¡ का प्रयोग भूमि, भवन, मनुष्य तथा घर के समान एवं वाहन तथा मशीन आदि की स्थिति सुधारने में किया जा सकता है।
पिरामिड की ऊर्जा के गुणातमक विस्तार में अंक 9 का विशेष महत्व है। अंक 9 का स्वामी मंगल है जो कि अग्नि का प्रतीक है। अग्नि  à¤Šà¤°à¥à¤œà¤¾ का प्रकट रूप है। इसीलिए पिरामिड ऊर्जा के विस्तार के लिए एक के नीचे नौ पिरामिड रखते हैं तथा उनमें से प्रत्येक के नीचे पुनः 9 पिरामिड रखकर ऊर्जा को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। वैसे भी अंक 9 सबसे बड़ी एकल संख्या है। इसलिए ऊर्जा के अधिकतम विस्तार के लिए 9 का अंक प्रयुक्त होता है।
     à¤ªà¤¿à¤°à¤¾à¤®à¤¿à¤¡ यंत्र का शक्ति उत्पादक-सूत्र प्राचीन विद्याओं से प्रेरित है। पिरामिड में अंक 9 की शक्ति का प्रयोग ग्रहों से भी प्रेरित है। मनुष्य के जीवन पर ग्रहों का भी प्रभाव अत्यधिक पड़ता है। जन्म से लेकर मृत्युकाल तक ग्रह हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। इसीलिए पिरामिड चिप नौ पिरामिडों को लेकर बनायी गयी है ताकि ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त हो सके। प्राचीन विद्याओं में 9x9 के सूत्र का उपयोग कई तरह से किया गया है। जैसे- अंक ज्योतिष में 9 अंक, ज्योतिष में- 9 ग्रह, वास्तु तथा फेंगशुई में 9 खंड, भारतीय, मुस्लिम और चीनी पांपरागत यंत्रों में भी इसका उपयोग है। 9 का अंक शक्ति का उत्पादक स्रोत है।
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