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पिरामिड द्वारा वास्तु दोष निवारण
वास्तु के साथ पिरामिड का बहुत नजदीक संबंध है। वास्तु का ही एक अभिन्न अंग है- पिरामिड। वास्तु दोषों के निवारण के लिए पिरामिड का प्रयोग किया जाना अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। ‘वास्तु दोष-निवृत्त’ शब्द का प्रयोग दो अर्थों में में किया जाता है- पहला, नये भवन का निर्माण करते समय और दूसरा, जब भवन का निर्माण कार्य पूरा हो है-   
पिरामिड, अष्टधातु पिरामिड, पारद पिरामिड सहित अंगूठी, लाॅकेट, ब्रेसलेट 
चुका हो। तत्पश्चात् निर्मित भवन के दोषों का पता चले, निर्मित भवन में कोई भी तोड़-फोड़ कराना आसान नहीं होता।
पिरामिड का प्रयोग दोनों ही परिस्थितियों में सुखदायी एवं शांतिप्रदायक होता है। ऊर्जा प्रवाह के द्वारा वास्तु-दोषों का सुधार करने का यह नया और अधिक व्यवहारिक तरीका है। वास्तु के छोटे-छोटे दोषों को डुंड कर उनमें सुधार करने की अपेक्षा घर या कार्यस्थल को ऊर्जा प्रवाह से परिपूरित कर दें तो उसके आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिलते हैं। आज के इस मशीनी युग में हमारे पास समय का अभाव है, इसीलिए हम अपनी समस्याओं का शीघ्र तथा वैज्ञानिक हल चाहते हैं।

     à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥ दोषों के निवारण की अन्य विधियों में आप केवल अपने सकारत्मक विचारों की शक्ति का, धन का तथा समय का उपयोग करते हैं। जबकि पिरामिड शक्ति असीम शक्तियों का भण्डार है। उसकी आकृति और ब्रह्माण्डीय रेखागणित व्यक्ति की लक्ष्य प्राप्ति में सहायता करते हैं और व्यक्ति की विचारधारा को भी उपयुक्त दिशा प्रदान करती है। इसका यह मुख्य लाभ है कि इस यंत्र को एक बार स्थापित करने के पश्चात् यह स्वयं कार्य करता है। पिरामिड को व्यक्ति की सकारत्मक ऊर्जा को बढ़ाने में अपेक्षाकृत कम समय लगता है। जैसे अग्नि का कार्य प्रकाश और ताप देना तो होता ही है, साथ ही यह परिष्कार भी करती है। अग्नि स्वर्ण की सारी कलुषता को जला देती है, जिससे सोना विशुद्ध कुंदन का डेला बन जाता है। इसी प्रकार पिरामिड भी कार्य करता है पिरामिड में भी अग्नि का वास माना जाता है। असकी विशेष आकृति छः दिशाओं में क्रिया करती है। यह ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का सूक्ष्म संसाधक है। पिरामिड सूर्य, चंद्र और अन्य ग्रहों की बरसती हुई ऊर्जा तथा पृथ्वी की उध्र्वागामी ऊर्जा से यारा काम करता है। इसी असीमित शक्ति के कारण यह दोषों के निवारण देता है। इसीलिए हम अनेकों वैज्ञानिकांे अध्ययनों व प्रयोगों के आधार पर यह कह सकते हैं कि पिरामिड वास्तु दोषों के निवारण में सक्षम है।
     à¤ªà¤¿à¤°à¤¾à¤®à¤¿à¤¡ के द्वारा वास्तु दोषों का निवारण करके व्यक्ति सुखी व सम्पन्न रह सकते हैं। पिरामिड की स्थापना का अर्थ है- सभी प्रकार के वास्तु दोषों से पूर्णतया मुक्ति।
     à¤ªà¤¿à¤°à¤¾à¤®à¤¿à¤¡ एक नई व आधुनिक तकनीक के रूप में अन्य तकनीकों व साधनों के साथ वास्तु के दोषों को दूर करने में अत्यंत प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। यह पिरामिड देखने में अवश्य मिस्र के पिरामिड के समान लगता हैं, परंतु इसका कार्य करने का सिद्धांत बिल्कुल अलग है और यह कई प्रकार के कार्याें हेतु प्रयोग में लाया जा रहा है। अलग-अलग वास्तु दोषों के निवारण के लिए अलग-अलग तरह के पिरामिड यंत्रों का प्रयोग में होता है। जैसे- पायरा स्ट्रिप, पायरा एंगल, पायरा चिप, पायरा एरो, मल्टियर पिरामिड, पायरा वास्तु स्वास्तिक। अलग-अलग समस्याओं के लिए अलग-अलग पिरामिड यंत्रों का उपयोग किया जाता है। पिरामिड का रंग सफेद ही अधिक अच्छा होता है क्योंकि सफेद रंग ब्रह्माण्डीय स्तर पर सभी रंगों को ग्रह करने की क्षमता रखता है।
     à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥ सुधार में पिरामिड यंत्रों को दीवार या छत में शीर्ष नीचे की ओर करके लगाया जाता है उन्हें धरती के नीचे भी लगाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए निम्न रेखा चित्र को देंखें।
     à¤ªà¤¿à¤°à¤¾à¤®à¤¿à¤¡ यंत्र स्थापित करना हो तो कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें। ब्रह्मस्थल को ऊर्जित करने और भूखंड की सुरक्षा के लिए पिरामिड यंत्र जमीन के अंदर ही रखने पड़ते हैं। ऐसे में कम से कम नौ पिरामिड यंत्र लगाने चाहिए।एक फुट से अधिक गहरा गड्ढा खोदेें और इतना बड़ा खोदें कि प्रत्येक पिरामिड के बीच कम से कम छः इंच का अंतर रहे।

     à¤¸à¤¾à¤¥ ही यह भी ध्यान रखने योग्य है कि पिरामिड यंत्रों की आधार रेखा चुम्बकीय धुरी के समानांतर रहे। इसके बाद गड्ढे को भर दें। अगर खेत में जमीन के अंदर पिरामिड स्थापित करना हो तो गड्ढा तीन फुट गहरा खोदना चाहिए।
     à¤¦à¥€à¤µà¤¾à¤° और छत पर पिरामिड यंत्र लगाने के लिए दोनों ओर चिपकाने वाले ट्विन टेप को प्रयोग करेें। यह टेप दोनों ओर से चिपकाना है। टेप का छोटा टुकड़ा काटें और पिरामिड की प्लेट के नीचे चिपका दें। पिराम्डि की आधार रेखा जमीन या छत के समानांतर होनी चाहिए। छत पर सभी पिरामिड के शीर्ष नीचे की तरह रहेंगे।
     à¤•à¤® से कम और अधिक सक अधिक कितने पिरामिड का उपयोग होना चाहिए यह भी अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। वैसे तो पिरामिड शक्ति अत्यधिक ऊर्जा युक्त होती है इसलिए छोटी-सी पिरामिड चिप से भी अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकता हैं। कम से कम पिरामिड की संख्या नौ होनी चाहिए। ब्रह्मस्थान में यदि वास्तु दोष हो तो पिरामिड की संख्या नौ हो और उसे जमीन के अंदर स्थापित करें। नौ मल्टीपल पिरामिड भी लगायी जा सकती है। जहां पर वास्तु दोष सुधार करना हो तो वहां पर कम से कम तीन पिरामिड यंत्र लगायें। लेकिन दोष बड़े या गहरे रूप में है, तो पिरामिड की संख्या को 9 के मल्टीपल में बढ़ाते जायें। जैसे -9, 18, 27।
     à¤¸à¤¬à¤¸à¥‡ पहले घर के ब्रह्मस्थान को ऊर्जित करना चाहिए। उसके बाद रसोई घर, शयनकक्ष और शौचालय आदि में पिरामिड यंत्रों का इस्तेमाल करना चाहिए। शौचालय के अंदर कभी भी पिरामिड यंत्र न लगाएं।
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