हीरा शुक्र का रत्न माना जाता है।
हीरा- हीरे के सम्बन्ध में एक मान्यता तो यह रही है कि वह नर, नारी और नपंुसक तीन प्रकार का होता है। रस बीर्य और विपाक गुण धर्मानुसार नर हीरा उत्तम होता है। नारी हीरा मध्यम तथा नपुंसक हीरा अधम श्रेणी का होता है। दूसरी मान्यता यह है कि रूप रंग के अनुसार हीरा चार प्र्रकार का होता है- ब्राहाण, क्षत्रिय, वैष्य और शुद्र। जो हीरा आट कोण अथवा छः कोण वाला हो और जिस प्रकार इन्द्रधनुष की परछाई जल में पड़ने से सात रंगो की प्रतिच्छाया दिखाई देती है, उसी प्रकार हीरे को स्वच्छ जल के ऊपर हाथ की अंगुलियों से पकड़ कर दिखाने से जल के भीतर पुत्र की कामना करने वाली स्त्रियों को सफेद, निर्मल शुक्ल आभा युक्त हीरा शुभफलदायी होता है। एक मत यह भी है कि सन्तान की कामना करने वाली स्त्रियों को हीरा धारण नहीं करना चाहिए। ब्राहाण हीरा- बिल्कुल श्वेत और किसी प्रकार की झाई से रहित होता है। क्षत्रिय हीरा- श्वेत होता है, परन्तु उसमें लाल रंग की किचित आभा होती है। वैश्य हीरा - वह होता है। जिसमें पीत आभा होती है। शुद्र हीरा-वहहैजिसमेंकालीआभाहोतीहै। | ||||
|