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तुलसी इतनी पूज्यनीय क्यों?
जिस समय क्षीरसागर का मंथन प्रारम्भ हुआ उस समय श्री हरि के अंश से तुलसी का प्रार्दुभाव हुआ श्री हरि के स्पर्श से अत्यन्त पवित्र होने के कारण श्री कृष्ण ने तुलसी को गोमती तट पर लगाया था और श्री राम ने राक्षसों के संहार के लिये सरयू के तट पर लगाया था। श्री राम से वियोग होने पर सीता जी ने भी तुलसी का पूजन व ध्यान किया था जिससे वे अपने मनोरथ को पूर्ण करने में सफल हुई और अपने पति श्री राम से मिल पायी थी। ऐसा भी कहा जाता है कि माँ पार्वती ने शिव जी को पाने के लिये हिमालय पर्वत पर कठिन तपस्या की थी और अभीष्ट की सिद्धि के लिये उन्होनें तुलसी के बृक्ष समुह लगायें व उसका सेवन भी किया जिस कारण वे शिव को पति रूप में वरण कर इस जगत में शिवशक्ति कहलायी। अनेक पौराणिक कथायें आज भी हिन्दू परिवारों को तुलसी के पौधों को अपने भवन में स्थापित करने के लिये आज भी प्रेरित करती है। सभी हिन्दू परिवारों में ऐसा कोई भवन नहीं मिलेगा जहाँ तुलसी का वृक्ष अथवा तुलसी का पौधा ना हो सत्यनारायण भगवान की कथा के प्रसाद व पंचामृत में जन्माष्टमी व अन्य धार्मिक उत्सवों में व पूजा के समय तुलसी दल का होना आवश्यक इस लिये माना जाता है क्योंकि तुलसी दल के स्पर्श से ईश्वर को अर्पित भोज्य पदार्थ भी पवित्र हो जाता है जो व्यक्ति मन को पवित्र विचारों वाला और शरीर को स्वस्थ बनाता है। श्री गणेश जी के अतिरिक्त तुलसी दल सभी देवी देवताओं पर चढ़ाया जाता है। हिन्दू संस्कृति के अनुसार मृत व्यक्ति की तब तक सद्गति नही होती जब तक उसके मुख में तुलसी दल न डाला जाये। ऐसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी की पूजा अर्चना होती है वहाँ सदैव ऋद्धि-सिद्धि बनी रहती है। किसी भी कार्य की सिद्धि के लिये कार्तिक माह में तुलसी के आगे घी का दीपक जलाना व चंदन की अगरबत्ती जलाना अत्यन्त शुभ माना जाता है। प्रतिदिन सायंकाल में तुलसी के दाहिनी ओर दीपक जलाना चाहिये जिससे दीपक का प्रकश हमें व हमारे सगे सम्बन्धियों को उन्नति की राह दिखायें। अनेक हिन्दु परिवारों में यह प्रश्न उठता है कि वास्तु शास्त्रानुसार तुलसी के पौधे को भवन की किस दिशा में लगाना सर्वाधिक फलदायी माना जाता है। प्राचीनकाल में बहुत से भवनों में अधिकतर ब्रह्मस्थान का भाग खुला हेाता था। वहाँ तुलसी का पौधा लगाकर पूजा सरलता से की जाती थी और तुलसी की प्रदक्षिणा का भी पूजा लाभ लिया जाता था। यह वास्तु के अनुसार तुलसी लगाने की अति उत्तम व्यवस्था थी समयानुसार धीरे-धीरे खुला ब्रह्मस्थान प्रायः विलीन होता जा रहा है अब तुलसी के पौधे को गमले में लगाकर कही भी रख दिया जाता है। भवन में तुलसी को क पूर्व दिशा, पूर्व व आग्नेय कोण के मध्य में, दक्षिण, पश्चिम और वायव्य कोण में लगाकर शुभ प्राप्त किया जा सकता है। भवन की उत्तर पूर्व दिशा में इस पौधे को यदि लगा दिया जायेगा तो यह बड़ा होकर उस दिशा को भारी व ऊँचा कर देगा अतः वास्तु के अनुसार लगाया गया तुलसी को पौधा भवन वास्तु दोषों को समाप्त करने का अत्यन्त श्रेष्ठ उपाय है। भू-तुलसी, कृष्ण तुलसी, श्यामा तुलसी, वन तुलसी, लक्ष्मी तुलसी, राम तुलसी, रक्त तुलसी ये सभी तुलसी के नाम अपने धार्मिक व औषधीय गुणों के कारण विश्व विख्यात ख्याति को प्राप्त हो चुके हैं। रसायनिक व चिकित्सकीय दृष्टि से भी तुलसी कफ, वात, पित्त तीनों दोषों का नाशक मानी जाती है। तुलसी की महिमा न केवल धार्मिक है अपितु यह सैकड़ों लोगों के लिये आरोग्य वद्र्यक मानी जाती है। तुलसी की महिमा न केवल धार्मिक है अपितु यह सैकड़ों लोगों के लिये आरोग्य वर्धक मानी जाती है। जिस तुलसी का बखान गोस्वामी तुलसीदास ने “अबहु तुलसिका हरिदृ प्रिय” के रूप किया जिस तुलसी को विभिषण के घर के आगे देखकर कपिराज हनुमान जी ”नव तुलसिका बृंद तेहँ देखि हरण कपिराइ“ अत्यन्त हर्षित हुये, जिस तुलसी को श्री हरि ने सदा अपने मस्तक पर सुशोभित रहने का गौरव प्रदान किया और इसके दर्शन, पूजन व अभिषेक से सभी देवी देवताओं के पूजन का लाभ स्वतः ही मिल जाता है तो ऐसी पवित्र और कल्याणकारी तुलसी को अपने भवन में स्थान देकर शुभ फल प्राप्त करें। पद्यापुराण में भी इसकी महिमा इस प्रकार कही गई है। हे तुलसी तुम अमृत से उत्पन्न हो, और केशव, भगवान श्री हरि की सदा ही प्रिय हो, हे कल्याणमयी मैं भगवान की पूजा के लिये तुम्हारे पत्तों को चुनता हूँ, तुम मेरे लिये सदा वरदायिनी वनों, तुम्हारे श्री अंगों से उत्पन्न होने वाले पत्तों व मंजयिं से मैं हमेशा जिस प्रकार श्री हरि का पूजन कर सकूँ ऐसा उपाय करो। हे पवित्राडंगी तुलसी तुम कलीमल का नाश करने वाली हो। |
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