Bhavishy Darshan
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का महत्व
        वैसे तो सभी व्रत और त्यौहारों का महत्व होता हैं पर कृष्ण जन्माष्टमी का विशेष महत्व हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति जन्माष्टमी का व्रत विधि-विधानानुसार करता है, उसके समस्त पाप मिट जाते हैं, उसकी आयु, कीर्ति, यश, लाभ, पुत्र और पौत्रों की वृद्धि होती हैं। और वह इसी जन्म में सब प्रकार के सुखों को भोगकर अन्त में मोक्ष पद का अधिकारी हो जाता हैं।
        कथा है कि- द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसों के अत्याचार बढ़ने लगे। पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपनी कथा सुनाने के लिए तथा अपने उद्वार के लिए ब्रह्माजी के पास गई। ब्रह्माजी सब देवताओं को साथ लेकर पृथ्वी को विष्णु के पास क्षीर सागर ले गये। उस समय भगवान विष्णु अनन्त शैया पर शयन कर रहे थे। स्तुति करने पर भगवान की निद्रा भंग हो गई। भगवान ने ब्रह्मा एवं सब देवताओं को देखकर उनके आने का कारण पूछा तो पृथ्वी बोली-भगवान मैं पाप के बोझ से दबी जा रही हूँ। मेरा उद्वार कीजिए। यह सुनकर विष्णु बोले-मैं ब्रज मण्डल में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूँगा। तुम सब देवतागण ब्रज भूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण करो। इतना कहकर भगवान अन्तध्र्यान हो गये।
        इसके पश्चात् देवता ब्रज मण्डल में आकर यदुकुल में नन्द-यशोदा तथा गोप-गोपियों के रूप में पैदा हुए।
        द्वापर युग के अन्त में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतार कर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि ”हे कंस! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा हैं उसका आठवाँ पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने को तैयार हो गया। उसने सोचा न देवकी होगी न उसका कोई पुत्र होगा। वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं हैं देवकी की आठवीं संतान को तुम्हें सौंप दुँगा। तुम्हारे समझ में जो आये उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव- देवकी को कारागार में बन्द कर दिया। तत्काल नारदजी वहाँ आ पहुचें और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवाँ गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम या अन्तिम गर्भ से शुरू होगी। कंस ने नारदजी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को मारने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार एक-एक करके कंस ने देवकी के सात बालकों को निर्दयता पूर्वक मार डाला।
        भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, ”अब में बालक का रूप धारण करता हूँ। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा। दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो। तत्काल वासुदेव जी की हथकड़ियाँ खुल गयीं। दरवाजे अपने आप खुल गये। पहरेदार सो गये। वासुदेव कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल को चल दिये। रास्ते में यमुना श्री कृष्ण के चरणों को स्पर्श करने के लिए बढ़ने लगी। भगवान ने अपने पैर लटका दिये। चरण छूने के बाद यमुना घट गई। वासुदेव यमुना पार कर गोकुल में नन्द के यहाँ गये। बालक कृष्ण को यशोदा जी के बगल में सुलाकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गये। जेल के दरवाजे पूर्ववत् बन्द हो गये। वासुदेव जी के हाथों में हथकड़ियां पड़ गई। पहरेदार जाग गये। कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई। कंस ने कारागार में आकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गयी और देवी का रूप धारण कर बोली, ‘हे कंस! मुझे मारने से क्या लाभ हैं? तेरा शत्रु तो गोकुल में पहुँच चुका हैं। यह देखकर कंस हंतप्रभ और व्याकुल हो गया।
        कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे श्री कृष्ण ने अपनी आलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बड़े होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया। और अपने माता-पिता को कारागार से छुड़ाया।
        व्रत का महत्व- जो व्यक्ति श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत विधि-विधानानुसार व श्रद्धा के साथ करता हैं। उसके समस्त पाप मिट जाते हैं। वह ऐश्वर और मुक्ति को प्राप्त करता हैं उसकी आयु, कीर्ति, यश, लाभ, पुत्र और पौत्रों में वृद्धि होती हैं। और वह इसी जन्म में सब प्रकार के सुखों को भोगकर जाता हैं। और अन्त में मोक्ष पद का अधिकारी होता हैं। जो लोग केवल भक्तिभाव से कथा सुनते है उन लोगों के भी पाप नष्ट हो जाते हैं। और वे उत्तम गति को प्राप्त करते हैं।
        पूरे भारतवर्ष में भाद्रपद मास में कृष्णपक्ष की अष्टमी को रात बारह बजे भगवान श्री कृष्ण जी का जन्मोत्सव बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता हैं। इस तिथि को रोहिणी नक्षत्र का विशेष माहात्मय हैं। इस दिन देश के समस्त मन्दिरों का श्रृंगार किया जाता हैं। कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झाँकियां सजायी जाती हैं। भगवान श्री कृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजाया जाता हैं। इस व्रत को बाल, युवा, वृद्ध सभी कर सकते हैं। उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। इस दिन प्रातः काल दैनिक नित्यकर्मो से निवृत्त होकर व्रती को संकल्प लेकर व्रत प्रारम्भ करना चाहिये। इस दिन यम-नियमों का पालन करते हुये निर्जल व्रत रखना चाहिये। पूरा दिन और रात्रि भगवान बाल कृष्ण के ध्यान, जप, पूजा, भजन-कीर्तन में बितायें। भगवान के दिव्य स्वरूप का दर्शन करें उनकी कथा का श्रवण करें। रात को बारह बजे शंख तथा घंटों की आवाज से श्री कृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूंजती हैं। जन्म के बाद अर्धरात्रि में भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप को पूजकर उनका पूरा श्रंृगार करकर, झूला बनाकर बालकृष्ण को उसमें झुलाया जाता हैं। आरती के बाद दही, माखन, मिशरी, पंजीरी का प्रसाद लगाकर बाँटे जाते हैं। कुछ लोग रात में ही पारण करते हैं और कुछ लोग दूसरे दिन ब्राह्माणों को भोजन कराकर स्वयं पारण करते हैं। यदि कोई पूर्व में भोजन करना चाहे तो अर्धरात्रि में भगवान का जन्मोत्सव मनाकर प्रसाद आदि ग्रहण करके भोजन करना चाहिये।
        कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाला हैं। इसे पूर्ण विधि और श्रद्धा के साथ श्री कृष्ण जी में लीन रहकर करिये। इसमें आपको ईश्वर का अद्भुद रूप दिखायी देगा।
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