à¤à¤¾à¤°à¤¤ में मिसà¥à¤° के समान अनूठे पिरामिड देखने को नहीं मिलते, किंतॠà¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ मनीषियों ने मिसà¥à¤° के पिरामिड निरà¥à¤®à¤¾à¤£ में अपना उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय योगदान दिया है। मिसà¥à¤° के पिरामिड पर उनका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ काल, निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ कारीगरों आदि के नाम तथा चितà¥à¤° उतà¥à¤•à¥€à¤°à¥à¤£ हैं। समयांतराल के कारण वे कà¥à¤› धूमिल हो गये हैं, किंतॠधà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से देखने पर उन चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ में कà¥à¤› आकृतियां à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ की जान पड़ती हैं। उनकी वेशà¤à¥‚षा, ललाट तथा à¤à¥à¤œà¤¾à¤“ं पर वैषà¥à¤£à¤µ तिलक सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ रूप से अंकित हैं।
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· में पिरामिड का पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ आदिकल से ही रहा है। ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ वनों तथा परà¥à¤µà¤¤à¥‹à¤‚ से साधना हेतॠजो कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ बनाते थे, वह à¤à¥€ ठीक पिरामिड के आकार की होती थी। पिरामिडाकार कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ में विचितà¥à¤° शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ खेला करती थी तथा मानसिक रूप से अशांत वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के पास कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ में बैठते ही शांति का अनà¥à¤à¤µ करते थे। इतना ही नहीं कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ अथवा पिरामिड के à¤à¥€à¤¤à¤° बैठने, सोने या साधना करने से आज à¤à¥€ अनà¥à¤•à¥‚ल वातावरण निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ होता है।
à¤à¤¾à¤°à¤¤ में पिरामिडाकार के विषय में अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤•à¤¾à¤² से ही समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ जानकारी थी। हमारे देश के ऋषि, मà¥à¤¨à¤¿ à¤à¤µà¤‚ तपसà¥à¤µà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने इस आकृति का उपयोग मंदिरों, गà¥à¤°à¥‚कà¥à¤²à¥‹à¤‚ आदि सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• ऊरà¥à¤œà¤¾ के संचार के लिठकिया। ऋषियों की कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ तथा आशà¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ की छतें à¤à¥€ इस सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ही बनाई जाती थी। पिरामिडनà¥à¤®à¤¾ छतें वायà¥à¤®à¤£à¥à¤¡à¤²à¤¿à¤¯ शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करके आशà¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ व कà¥à¤Ÿà¥€à¤°à¥‹à¤‚ में à¤à¤° देती थी, जिससे उनमें रहने वाले लाà¤à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¿à¤¤ होते थे। सिरà¥à¤« यही नहीं विशेष साधनाओं व तपों केलिठऋषियों के हिमालय की चोटियों पर जाने की à¤à¥€ परंपरा थी। परà¥à¤µà¤¤à¥‹à¤‚ के à¤à¥€à¤¤à¤° जा पाना तो संà¤à¤µ नहीं था, किंतॠपरà¥à¤µà¤¾à¤¤à¥‹à¤‚ की पिरामिडीय संरचना के कारण शकà¥à¤¤à¤¿ संचयन का सिधà¥à¤¦à¤¾à¤¨à¥à¤¤ वहां à¤à¥€ लागू होता था। वे पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के निकट किसी गà¥à¤«à¤¾ या कंदरा को तप के निठचà¥à¤¨à¤¤à¥‡ थे। इससे परà¥à¤µà¤¤ के à¤à¥€à¤¤à¤° जाने के साथ-साथ à¤à¥‚गरà¥à¤à¥€à¤¯ ऊरà¥à¤œà¤¾ से à¤à¥€ लाà¤à¤¾à¤‚वित होने के अवसर होते थे। यह परà¥à¤µà¤¤à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• रूप से पिरामिड आकार होने के सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त से उठाये जाने वाले आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• लाठथे।
पिरामिड रूपी संरचना तथा इसके पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ से à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ लोग वैदिक यà¥à¤— से ही पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ थे। तà¤à¥€ तो मंदिरों के गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦, गरà¥à¤à¤—ृह, यजà¥à¤ž हेतॠवेदी आदी का आकार पिरामिड के समान रहा है। मंदिरों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° के आधार पर किया गया है। मंदिरों में दो मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¤¾à¤— माने गये हैं- ऊपरी à¤à¤¾à¤— शिखर तथा निचला à¤à¤¾à¤— उप पीठ। शिखर के समान रखा जाता है तथा नकà¥à¤•à¤¾à¤¶à¥€ à¤à¤µà¤‚ à¤à¤µà¥à¤¯ कलाओं के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उसे आकरà¥à¤·à¤• बनाया जा सकता है। पिरामिड सदृशà¥à¤¯ रचना का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— हमारे वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मंदिरों में देवसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में बनाने की पà¥à¤°à¤¥à¤¾ अति पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ में बने विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ मंदिरों की संरचना इस बात का पà¥à¤°à¤®à¥à¤– उदाहरण है। जैसे- वेंकटेशà¥à¤µà¤° à¤à¤—वान का मंदिर à¤à¤µà¤‚ तंजौर का वृहदेशà¥à¤µà¤° मंदिर आदि। इन मंइिरों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° किया गया है। शायद इसी कारण यह मंदिर विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ है।
मंदिरों को पिरामिडनà¥à¤®à¤¾ बनाने के साथ ही पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ ऋषियों ने शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ यंतà¥à¤° बनाया, जो पिरामिड की आकृति का है। इस यंतà¥à¤° को ‘शà¥à¤°à¥€ यंतà¥à¤°â€™ के नाम से पà¥à¤•à¤¾à¤°à¤¾ जाता है। शà¥à¤°à¥€ यंतà¥à¤° का अरà¥à¤¥ है- ‘शà¥à¤°à¥€â€™ का यंतà¥à¤° अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ का यंतà¥à¤°à¥¤ यह यंतà¥à¤° अनà¥à¤¯ यंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में शिरोमणि माना गया है। शà¥à¤°à¥€ यंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ ‘मेरूपृषà¥à¤ ीय शà¥à¤°à¥€ यंतà¥à¤°â€™ अति उतà¥à¤¤à¤® तथा अति विशेष पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ कहा जाता है। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उसमें मेरूपृषà¥à¤ ीय के कारण à¤à¤• पिरामिड की शकà¥à¤¤à¤¿ और जà¥à¥œ जाती है।
शà¥à¤°à¥€ यंतà¥à¤° में उरà¥à¤§à¥à¤µà¤®à¥à¤–ी तà¥à¤°à¤¿à¤•à¥‹à¤£ शकà¥à¤¤à¤¿ के तथा अधोमà¥à¤–ी तà¥à¤°à¤¿à¤•à¥‹à¤£ शिव के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• हैं। ‘शà¥à¤°à¥€ यंतà¥à¤°â€™ में 108 पिरामिडो (तà¥à¤°à¤¿à¤•à¥‹à¤£à¥‹à¤‚) का संचित रूप है। 108 का मूलांक 9 है सबसे बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ है। इस यंतà¥à¤° में समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ संसार को अपनी ओर आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करने की अदà¥à¤à¥à¤¤ कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ होती है। आज à¤à¥€ देश के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ मंदिरों में सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ शिलाओं पर शà¥à¤°à¥€ यंतà¥à¤° उतà¥à¤•à¥€à¤°à¥à¤£ है। सोमनाथ मंदिर के à¤à¥‚गरà¥à¤ में, बालाजी में तथा फरà¥à¤°à¥‚खाबाद जिले के मंदिरों में शà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ ‘शà¥à¤°à¥€ यंतà¥à¤°â€™ उतà¥à¤•à¥€à¤°à¥à¤£ है।
इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से हम यह कह सकते हैं कि पिरामिड à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ संरचना है जिसकी सहायता से हम पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤µà¤¾à¤¨ आकाशीय ऊरà¥à¤œà¤¾ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर जीवन को समृदà¥à¤§à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ बना सकते हैं। हिंदू, मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤®, सिख तथा ईसाई सà¤à¥€ के साधना सà¥à¤¥à¤² शकà¥à¤¤à¤¿ के केंनà¥à¤¦à¥à¤° हैं। मंदिर, मसà¥à¤œà¤¿à¤¦, गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ और चरà¥à¤š को देखने के पर यह सिदà¥à¤§ होता है कि ये पिरामिडाकृति को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखकर ही बनाये गये हैं।
विशेषजà¥à¤žà¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, कà¥à¤› विशिषà¥à¤Ÿ आकृतियों, ढांचों, बनावटों तथा वसà¥à¤¤à¥à¤“ं में उचà¥à¤š सà¥à¤¤à¤°à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£ शकà¥à¤¤à¤¿ पैदा करने और पिरामिड पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को लमà¥à¤¬à¥‡ समय तक सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रखने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ होती है। पिरामिडों में पà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ में यह कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾à¤à¤‚ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हैं। पिरामिड निरà¥à¤®à¤¾à¤£ की दिशा सदैव उतà¥à¤¤à¤°-दकà¥à¤·à¤¿à¤£ में रखी जाती है। इसी दिशा से पृथà¥à¤µà¥€ की चà¥à¤®à¥à¤¬à¤•à¥€à¤¯ रेखाà¤à¤‚ गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥€ हैं। इन सà¤à¥€ कारणों के फलसà¥à¤µà¤°à¥‚प इनकी शकà¥à¤¤à¤¿ में वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। पिरामिड आकृति के कारण ही सà¤à¥€ धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ में जाकर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ à¤à¤•à¤¾à¤—à¥à¤° करने से मन में शांति का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ होता है और इचà¥à¤›à¤¾ शकà¥à¤¤à¤¿ दृॠहोती है। यदि इन गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦à¥‹à¤‚ (पिरामिड) को उलà¥à¤Ÿà¤¾ किया जाये, तो उसकी आकृति हवन कà¥à¤£à¥à¤¡ के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती है। हवन कà¥à¤£à¥à¤¡ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वायà¥à¤®à¤£à¥à¤¡à¤² का कण-कण शà¥à¤¦à¥à¤§ होता है।
पिरामिड की तà¥à¤°à¤¿à¤•à¥‹à¤£à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ तीन सतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ करती है जिसे निमà¥à¤¨à¤²à¤¿à¤–ित मंतà¥à¤° के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बताया जा रहा है-
असतो मा सदगमय
तमसो मा जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤—मय
मृतà¥à¤¯à¥‹à¤°à¥à¤®à¤¾à¤½à¤®à¥ƒà¤¤à¤‚ गमय।
अरà¥à¤¥à¤¾à¤® बà¥à¤°à¥‡ कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से सदà¥à¤•à¤¾à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की ओर अगà¥à¤°à¤¸à¤° रहो। पिरामिड शकà¥à¤¤à¤¿ का केंनà¥à¤¦à¥à¤° होने के कारण मनà¥à¤·à¥à¤¯ को सदà¥à¤•à¤¾à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की ओर अगà¥à¤°à¤¸à¤° होने के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ करता है। कà¥à¤› विशेष अनà¥à¤¸à¤‚धानों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, विशिषà¥à¤Ÿ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ à¤à¤µà¤‚ उचित आकार में रखने पर पिरामिड के पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ में वसà¥à¤¤à¥à¤“ं को सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ तथा पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤µà¤°à¥à¤§à¤• बनाने की अदमà¥à¤¯ कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ विकसित होती है इसी कारण पिरामिड में शकà¥à¤¤à¤¿ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होकर संरकà¥à¤·à¤£ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ में पिरामिडीय शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त का पालन अब à¤à¥€ नये बनने वाले मंदिरों में à¤à¥€ होता रहा है।
पिरामिडीय शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का अधिक वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•à¤¤à¤¾ व सूकà¥à¤·à¥à¤® सà¥à¤¤à¤° तक उपयोग à¤à¤¾à¤°à¤¤ में हà¥à¤† है। इसका à¤à¤• और उदाहरण राजाओं, महाराजाओं तथा देवताओं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सिर पर धारण करने वाले मà¥à¤•à¥à¤Ÿ हैं। शांति, सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾, सà¥à¤¥à¤¾à¤¸à¤¿à¤¤à¥à¤µ, सà¥à¤¥à¤¿à¤°à¤¤à¤¾ तथा शà¥à¤à¤¤à¥à¤µ के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ को धारण करने वाले वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ में- अपनी सूचà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤¾à¤° तà¥à¤°à¤¿à¤•à¥‹à¤£à¥€à¤¯/शंकॠआकारीय संरचना के कारण पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿ करती थीं। मà¥à¤•à¥à¤Ÿ न धारण करने वाले ऋषि अपनी जटाओं को सूचà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤¾à¤° रूप में लपेटकर सिर के मदà¥à¤§ में धारण करते थे।
ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ तो विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ थे, परनà¥à¤¤à¥ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· के गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥‹à¤‚ में निरकà¥à¤·à¤° लोग à¤à¥€ पिरामिड का महतà¥à¤µ जानते थे। ईंधन के रूप में पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किये जाने वाले उपले गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ जन पिरामिड के आकार की घास-फà¥à¤¸ तथा गोबर से पोतकर बनाई गयी कà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ (बिटोरा) में ही रखते हैं। जिससे वरà¥à¤·à¤¾-ऋतॠका उपलों पर कोई पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ नहीं वलà¥à¤•à¤¿ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· में à¤à¥€ पिरामिडाकार की उपयोगिता आदिकाल से ही रही है। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वासà¥à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚, शिलà¥à¤ªà¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ तथा ऋषियों ने पिरामिडों का विविध रूप में पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया है और पिरामिड शकà¥à¤¤à¤¿ व ऊरà¥à¤œà¤¾ का पूरà¥à¤£ लाठउठाया है। यह बात अलग है कि हमारे à¤à¤¾à¤°à¤¤ में पिरामिड आकृतियों का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— कबà¥à¤°à¤—ाह के रूप में नहीं हà¥à¤† है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह हमारे धरà¥à¤®, सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ और आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤® के अनà¥à¤•à¥‚ल नहीं है।