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वास्तु बिना उन्नति नहीं |
हम सभी जानते हैं कि क्रिया की प्रतिक्रिया और प्रतिक्रिया की भी कोई न कोई क्रिया अवश्य होती है। इन्हीं क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का अहितीय उदाहरण हमारा ब्रह्माण्ड है। ब्रह्माण्ड में स्थित उर्जायें चाहे वह गुरूत्वाकर्षणीय, चुम्बकीय, विद्युतीय हो या ध्वनि घर्षण, गर्जन, भूकंपीय, चक्रवात इत्यादि हो सदैव सक्रिय रहती हैं। उर्जाओं की सक्रियता ही इस चराचर जगत को चलायमान बनाती है। इन्हीं उर्जाओं के कारण ही इस जगत का संबंध सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जुड़ जाता है और तभी “यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्ड” जैसे वेद वाक्य रचा जाता है।
वास्तु की संरचना वैदिक विज्ञान में आध्यात्मिक होने के साथ-2 पूर्ण वैज्ञानिक भी है। वास्तु की वैज्ञानिक परिकल्पना का मूल आधार पृथ्वी और सौर मंडल में स्थित ग्रह व उनकी कक्षाएं हैं। हम ग्रहों के प्रभाव को प्रत्यक्ष देख तो नहीं सकते हैं मगर उनके प्रभाव को अनुभव अवश्य कर सकते हैं। इनके प्रभाव इतने सूक्ष्म व निरंतर होते हैं कि इनकी गणना व आंकलन एक दिन या निश्चित अवधि में लगना संभव नहीं है। वास्तुशास्त्र के अन्तर्गत इन ग्रहों व इनकी उर्जाओं को पृथ्वी के सापेक्ष में रखकर अध्ययन किया गया है। इसी अध्ययन का विश्लेषण वास्तु के वैज्ञानिक पक्ष के रूप में हमारे सामने आता है।
प्रकृति के पंच तत्व व उनकी उर्जाए ही वास्तु को जीवंत बनाती हैं। जीवंत वास्तु ही खुशहाल जीवन दे सकता है। इस तथ्य से हम वास्तु की उपयोगिता व वैज्ञानिकता को समझ सकते हैं। वास्तु कोई जादू या चमत्कार नहीं है अपित् शुद्ध विज्ञान है। विज्ञान का परिणाम उसके सिद्धान्तों क्रिया-प्रतिक्रिया पर निर्भर करते हैं उसी प्रकार वास्तु का लाभदायी परिणाम इसके चयन, सिद्धान्तों निर्माण इत्यादि पर निर्भर करता है। वास्तु सिद्धान्तों के अनुसार यदि चयन से निर्माण व रख रखाब पर ध्यान दिया जाये तो वास्तु का शत प्रतिशत पूर्ण लाभ प्राप्त होता है।
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