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मन्त्र - सामर्थ
मन्त्र में सामर्थ किससे प्राप्त होता है? साधक से या देवता से? या मंत्र स्वतः ही शक्तिमान होते हैं। मानव में दो मन होते है अन्तर्मन व बाह्य मन वा दूसरे शब्दों में कहे तो अंतश्चेता और बाह्य चेतना। बाहय चेतना स्थूल होती है, जिसके द्वारा हम जीव के सारे क्रिया कलाप करते है। भूख, प्यास, क्रोध, मोह इसी बाह्म चेतना के रुप है। अन्तः चेतना का इसमें कोई सम्बन्ध नहीं है। अन्तश्चेतना मानव की मूल शक्ति होती है। जो सर्वथा शुद्ध, निष्पाद एवं निर्मुक्त होती है। इस अंतः चेतना की अद्भूत शक्ति है। इसके माध्यम से वे सभी कार्य सम्भव है जो प्रत्यक्षतः असम्भव है। अन्तश्चेतना किसी में कम व किसी में अधिक जाग्रत रहती है। जो शुद्ध सात्विक है। उनकी अन्तश्चेतना अपेक्षाकृत ज्यादा सक्रिय एवं सजग रहती है। जब साधक मंत्र जप करता है। तब यह अन्तश्चेता ही सबसे ज्यादा सहायक होती है। इस अन्तश्चेतना के कारण ही मंत्र सजग व प्राणवान होता है। अर्थात मंत्र में सामर्थ कहीं बाहर से नहीं अपितु साधक के भीतर से ही प्राप्त होता है। साधक अपने प्रयत्नों से अपनी अन्तश्चेतना को ज्यादा से ज्यादा सजग व सक्रिय कर सकता है। इसलिये साधक को चाहिये कि वह नित्य कुछ समय के लिये शांत वातावरण में बैठकर अपने ध्यान को एकाग्र करने का प्रयत्न करें। साधना क्षेत्र की आधार यह अन्तश्चेतना ही है। इसके द्वारा ही मंत्र में सामर्थ व प्राण उत्पन्न होते है 1. मन्त्र क्या है? वह कैसे प्रभावित करता है? अनिष्ट फल को कैसे दूर करता है? 2. मंत्र कार्य कैसे करता है? 3. मंत्र व स्तोत 4. मन्त्र - सामर्थ 5. अंतश्चेतन को जाग्रत करने के लिये 6. साधन किस मास में आरम्भ की जाये? 7. जप का विशेष महत्व है। जप की कुछ सावधानियाँ 8. जप तीन प्रकार का होता है 9. माला संस्कार 10. माला फेरते हुए कुछ सावधनियाँ 11. पुष्प- शास्त्रों में पूजन के लिये पुष्प का विशेष महत्व 12. पुरश्चरण 13. यज्ञ/हवन |
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